बेटी !done



         वह डॉक्टर पहली बार माँ बनने जा रही थी।  अभी तक तो वह दूसरों का प्रसव कराती रही और खुश होती रही।  उसने डॉक्टर होकर भी एक संवेदनशील मन भी संजो रखा था।  जब उसके हाथ से बेटियां जन्म लेती तो वह माँ बाप को हिदायत देती -- " इसकी अच्छे से परवरिश करना , पढ़ाना - लिखना और सुरक्षित रखना। "
               वह जन्म ही नहीं दिला रही थी बल्कि कितनी मासूम बेटियों के क्षत विक्षत शवों और पुरुष की हैवानियत की शिकार बच्चियों का परीक्षण भी कर रही  थी।  कोई इनका जन्मदाता होता और कोई इनका भक्षक।वही एक पुरुष और डॉन अलग अलग रूप देख कर वह काँप जाती थी।

                    प्रसव पीड़ा होने पर वह भी आम औरत की तरह अस्पताल आयी थी। उसकी सहकर्मी भी आज खुश थीं।  उसने एक बेटी को जन्म दिया और होश आने पर आम माँओं की तरह उत्सुकता से पूछा -- "क्या हुआ ?"
"बेटी "उसकी सीनियर डॉक्टर ने उत्तर दिया।
"बेटी" " उसने सुनकर गहरी सांस भरी।
"अरे तुम भी ?" डॉक्टर ने उससे सवाल किया।
"वो बात नहीं है "
"फिर?"
"मैं सोचती हूँ कि क्या मैं अपनी बेटी की हिफाजत कर पाऊँगी ? क्या क्या  होता है , क्या मुझे नहीं पता है और मैं तो खुद भी देखती चली आ रही हूँ ?" वह फूट फूट कर रो पड़ी।
"नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होता , सब ठीक होता है और बच्चों की सुरक्षा अपने हाथ में होती है।  अभी से इतना परेशान क्यों हो ?" डॉक्टर ने  उसके सिर पर हाथ फिराते हुआ कहा।
"फिर भी मैं इन सब चीजों को नकार तो नहीं सकती हूँ , अपनी आँखों से देखती हूँ और फिर  ......।  वह गहरी साँस लेते हुए अपनी गीली आँखें पौंछने लगी।
"डॉक्टर तुम सबको बच्चियों के लिए इतनी हिदायतें देती हो और अपनी बेटी के लिए चिंतित हो रही हो.  वी  ब्रेव डॉक्टर। " सीनियर ने यह कहते हुए उसके दोनों हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा।
उसने गहरी साँस  लेते हुए " ओके " कह कर पालने में लेटी हुई अपनी बेटी की ओर  प्यार से निहारा ।

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