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बेटी !done

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         वह डॉक्टर पहली बार माँ बनने जा रही थी।  अभी तक तो वह दूसरों का प्रसव कराती रही और खुश होती रही।  उसने डॉक्टर होकर भी एक संवेदनशील मन भी संजो रखा था।  जब उसके हाथ से बेटियां जन्म लेती तो वह माँ बाप को हिदायत देती -- " इसकी अच्छे से परवरिश करना , पढ़ाना - लिखना और सुरक्षित रखना। "                वह जन्म ही नहीं दिला रही थी बल्कि कितनी मासूम बेटियों के क्षत विक्षत शवों और पुरुष की हैवानियत की शिकार बच्चियों का परीक्षण भी कर रही  थी।  कोई इनका जन्मदाता होता और कोई इनका भक्षक।वही एक पुरुष और डॉन अलग अलग रूप देख कर वह काँप जाती थी।                     प्रसव पीड़ा होने पर वह भी आम औरत की तरह अस्पताल आयी थी। उसकी सहकर्मी भी आज खुश थीं।  उसने एक बेटी को जन्म दिया और होश आने पर आम माँओं की तरह उत्सुकता से पूछा -- "क्या हुआ ?" "बेटी "उसकी सीनियर डॉक्टर ने उत्तर दिया। "बेटी" " उसने सुनकर गहरी सांस भरी। "अरे तुम भी ?" डॉक्टर ने उससे सवाल किया। "वो बात नहीं है " "फिर?" "मैं सोचती हूँ कि क्

विकल्प !

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*विकल्प* निशा अभी-अभी चाय  पीकर चुकी थी कि मोबाइल बज उठा और उसने उठा कर देखा तो मीना का था । "हैलो ।" "हैलो क्या हो रहा है?" "कुछ नहीं मीना, बस अभी चाय पीकर बैठे हैं" "वाह ! और नाश्ते में क्या बनाया?"  "अरे नाश्ता बनाने की छोड़ो, ब्रैड खा लिया। सुबह-सुबह कामवाली का फोन आ गया कि वह बीमार है ।" "फिर।" "फिर क्या ! अपन हैं न उसका विकल्प ।" "सही कहा तुमने निशा । हमें तो कभी-कभी बड़ा अफसोस होता है।" "ये तो सदियों से चला आ रहा है मीना । फिर अफसोस किस बात का?" "हाँ अफसोस क्या करना? खाना बनाओ तो परिवार के लिए , सफाई करो परिवार के लिए ... ।" "बर्तन भी माँजो तो परिवार के लिए और कोई बीमार हो जाए घर में तो उसकी जगह कमर कसे हम खड़े हैं न ।" पतिदेव का भी चाय नाश्ता खत्म हो चुका था। आदत के विपरीत उन्हौंने अपना कप-प्लेट समेटा और चल दिए किचन की ओर । देख कर निशा खिलखिलाकर हँस पड़ी तो मीना ने पूछा क्या हुआ ?   "शायद विकल्प का सहभागी जा

सुकून !

नीति स्कूल से निकल कर साइकिल से घर की तरफ चली जा रही थी।  ऑफिसर क्वार्टर होने के कारन कुछ रास्ता सुनसान भी पड़ता था।  वह उसी रास्ते पर चली जा रही थी कि  उसके बगल में एक गाड़ी रुकती है और उसको वह लोग गाड़ी में खींच लेते हैं और फिर उसके चिल्लाने से पूर्व ही उसको बेहोश करने के लिए कुछ सुँघा देते हैं।                  नीति जब होश में आयी तो उसने अपने को एक अँधेरे कमरे में पाया , जिसमें एक पुराना  सोफा पड़ा था और एक तरफ एक बैड कहे जाने वाला दीवान। उससे नहीं मालूम था कि कितना बजा  था और वह कहाँ ला कर बंद की गयी थी? उसे भूख तेजी से लोग रही थी लेकिन खाने को कुछ भी न था।  फिर उसने देखा कि कोई दरवाजा खोल रहा है , अँधेरे में रौशनी तेजी से आनी  शुरू हुई तो उसकी आँखें चुंधियाने लगी और उसने आँखों को रौशनी से बचाने के लिए अपनी  हथेली सामने फैला ली। उसे आने वाले की शक्ल नहीं दिख रही थी। "कौन ?" आने वाले ने पूछा। "मैं नीति। ": उसने कांपती आवाज में कहा।           आने वाला समझ गया कि ये कारस्तानी सेठ जी के बेटे की होगी।  वह अपने आवारा दोस्तों के साथ मिल कर कुछ भी कर सकता