विकल्प !
*विकल्प*
निशा अभी-अभी चाय पीकर चुकी थी कि मोबाइल बज उठा और उसने उठा कर देखा तो मीना का था ।
"हैलो ।"
"हैलो क्या हो रहा है?"
"कुछ नहीं मीना, बस अभी चाय पीकर बैठे हैं"
"वाह ! और नाश्ते में क्या बनाया?"
"अरे नाश्ता बनाने की छोड़ो, ब्रैड खा लिया। सुबह-सुबह कामवाली का फोन आ गया कि वह बीमार है ।"
"फिर।"
"फिर क्या ! अपन हैं न उसका विकल्प ।"
"सही कहा तुमने निशा । हमें तो कभी-कभी बड़ा अफसोस होता है।"
"ये तो सदियों से चला आ रहा है मीना । फिर अफसोस किस बात का?"
"हाँ अफसोस क्या करना? खाना बनाओ तो परिवार के लिए , सफाई करो परिवार के लिए ... ।"
"बर्तन भी माँजो तो परिवार के लिए और कोई बीमार हो जाए घर में तो उसकी जगह कमर कसे हम खड़े हैं न ।"
पतिदेव का भी चाय नाश्ता खत्म हो चुका था। आदत के विपरीत उन्हौंने अपना कप-प्लेट समेटा और चल दिए किचन की ओर ।
देख कर निशा खिलखिलाकर हँस पड़ी तो मीना ने पूछा क्या हुआ ?
"शायद विकल्प का सहभागी जाग उठा है ।" कहते हुए वह भी किचन की ओर चल दी ।
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