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आसरा !

             बीमार पति की दवा और १ साल के बच्चे का दूध यही तो उसकी प्राथमिकता थी।  सास मालकिन थीं, लेकिन लाकर देने वाली वह अकेली थी। मीलों पैदल चलकर मोजा फैक्ट्री की बस मिलती थी, तब वह फैक्ट्री पहुँचती थी।  घर से निकलने से पहले सास और पति के लिए रोटियां भी तो बना कर रखनी होती थीं और लौटकर फिर वही काम।  वह बैल की तरह दौड़ती रही किन्तु कोई उसकी पीठ  पर हाथ फिराकर पुचकारने वाला न था। सात फेरों का बंधन निभा रही थी।  हाते में रहने वाले सभी तो उसकी तारीफ करते लेकिन जब सास हाते में बैठ कर कमियों की झड़ी लगा देती तो सब उठकर चल देते।                         फिर एक दिन फैक्ट्री से लौटते समय दुर्घटना का शिकार हो गयी।  एक हाथ और दोनों पैर में फ्रैक्चर,  बस सब कुछ वही रुक गया - बैल की सी दौड़ और सबकी सेवा सुश्रुषा।  कुछ मुआवजा मिल गया और सास की जेब में चला गया - मालकिन जो थी।  ...